Wednesday 4 December 2013

यूँ तो ज़माने में...


यूँ तो ज़माने में हमारे 
दुश्मन बहुत हैं 
मगर चीरते हैं दिल वही अक्सर 
जो दिल में रहते हैं,

जख्म देकर 
जहन की परत परत नोंच कर 
आँख में क्यूँ हैं आँसू 
अब सबब पूछते हैं,

यूँ तो शिकवा नहीं उनसे 
शिकायत नहीं कोई 
खंजर है उनकी फितरत 
हम तो मरहम ढूंढते हैं,

इश्क़ मुहब्बत क़ुरबत में 
कुछ भी हासिल नहीं यारों 
ये तो वो जोंक हैं 
जो धीरे धीरे दिल का 
लहू चूसते हैं !
 

तेरी आँखें...

तेरी आँखें जो देखती हैं मुझको यूँ 
जमीं पर जन्नत का गुमां होता है 
उमड़ता है जो तूफां सा दिल में 
जरा गौर से देख 
मेरी आँखों से बयां होता है !

तेरी तस्वीर को...

तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है 
तुझको यूँ बाहों में छुपा रखा है,

लबों पे आकर ठहरी है जो प्यास उसे 
तबस्सुम से किनारे पे दबा रखा है,

कभी मिल जाये मुझसे यूँ ही तन्हाई में 
हर पल दिल ये तमन्ना करता है,

बेचैन सी इन निगाहों को 
पलकों से झुका रखा है,

तुझको यूँ बाहों में छुपा रखा है !

Saturday 28 September 2013

जिंदगी के गलियारे से...

जिंदगी के गलियारे  से 
गुज़र गये वो पलछिन
 ढलते सूरज के संग बीतती शामें 
लहराती हवाओं में साँय साँय आवाजें,

अभी कुछ लम्हा ही तो चली थी 
कुछ पहर बिता के तेरे साथ 
हाथ में लिये तेरा मखमली हाथ 
जिसके स्पर्श मात्र से 
सुकून हर कोने कोने में भर जाता था 
हर रोयां रोयां बदन का खिल जाता था,

आज कुछ ऐसी ही ठंडक मिली है 
हवाओं में कुछ वही बात है 
निकल आयी हूँ कुछ दूर तेरे संग 
छू रही हैं अलकों को ये ठंडी हवा 
और ताज़गी दे रहा है चेहरे को 
ये नूर तेरा,

जो बरस रहा है तेरी आँखों से 
भिगो रहा है मेरा अंतर्मन 
मेरे हर कदम पर बढता 
तेरा हर एक कदम 
मेरे हाथों में तेरा हाथ 
और इन काली घटाओं से 
उतरता हुआ माहताब,

ये सब गवाह हैं उन पलों के 
जो बीत रहे हैं तेरे संग 
जिन्दगी के गलियारे से 
गुज़र रहे हैं ये पलछिन !


मेरे हबीब...


तेरा अक्स आँखों में उतरता है जब 
गोया मेरी हर धड़कन मचल जाती है,

जब जब देखती हूँ मैं आइना 
मुझे तेरी सूरत नज़र आती है,

ये इश्क़ ए जुनूं है या दीवानगी मेरी 
हर सू तेरी खुश्बू बिखर जाती है,

मेरे हबीब ये कैसा जादू है तेरा 
मेरी रूह तेरे एहसास में पिघलती जाती है,

रात भर उतरता है चाँद मेरे पहलू में 
चांदनी तेरा लम्स बनकर छू जाती है,

ये जमीं आसमां की बातें जुदा हैं मगर 
दिल को साँसें इन्हीं ख़्वाबों से आती हैं,

दिन गुजरता है तेरे पहलू में 
रात तेरे ख़्वाबों में गुजर जाती है !

ढल गयी आज की ये शाम...


ढल गयी आज की ये शाम 
दे गयी कुछ ख्वाब आँखों में 

कुछ एहसास जिन्होंने 
छू लिया मुझको 

ना हुई कोई हलचल 
ना कोई आहट 

फिर भी जैसे कुछ 
समाया है मुझमें 

वो डूबता हुआ सूरज 
अभी तो था नज़रों के सामने 

हाँ अभी तो था 
ना जाने कहाँ डूब गया 

लेकिन फिर आएगा कल ये 
लेकर एक नयी सहर 
लेकर कुछ नये ख्वाब !

ये यादें...


अपनी यादों में झाँका तो पाया मैंने 
सब कुछ है बिखरा पड़ा यहीं कहीं 
वो सारे मंजर,वो बातें 
वो सपने टूटे से मगर 
चंद निशां उनके भी मिल जाते हैं,
ये यादें
हाँ ये यादें भी कितनी अजीब होती हैं 
जिन्दा रखती हैं हमको अपने जहां में,
एक ऐसा जहां 
जहाँ हर एहसास धुंधला धुंधला सा 
मगर अपना सा महसूस होता है !

सोच क्या है...


सोच क्या है ...
एक कतरा ख्याल भरा 
एक पल ख्व़ाब भरा 
जीवन को दे दे आस कभी 
आँखों में भर दे प्यास कभी,

प्यास क्या है ...

एक बूँद एहसासों की 
एक कसक अरमानों की 
लबों को दे दे इंतज़ार कभी 
दिल में भर दे आस कभी,

आस क्या है ...

एक ज्योति विश्वास भरी 
एक साथी निस्वार्थ भरी 
जिन्दगी को दे दे सहारा कभी 
डूबते को दे दे किनारा कभी !


मेरी दुनिया...



मेरे सपने बसते हैं जहाँ 
वो दुनिया जो सिर्फ मेरी है 
मेरी सारी हसरतों के निशां 
आज भी मुझे अक्सर 
वहीं मिल जाया करते हैं,

जब जब गुजरती हूँ 
यादों की उन गलियों से 
मेरी वफाओ के वो 
अनगिनत बुझे हुए दिये 
आज भी मुझे अक्सर 
वहीं दिख जाया करते हैं,

वक़्त के इन पथरीले रास्तों ने 
मेरी दुनिया को भी 
पथरीली करना चाहा,

मुझे खुद से जुदा करके 
मुझे भी इस पत्थर की दुनिया का 
इक हिस्सा करना चाहा,

पर मेरे अस्तित्व के ये चिन्ह 
मेरे दिल से जुड़े ये मोम के रिश्ते 
आज भी मुझे अक्सर 
मेरी दुनिया में ले जाया करते हैं !

टूटे हुए ख्वाब...


आँखों में तैरते हैं जो 
पानी के मानिन्द 
आँसू नहीं हैं ये 
ये टूटे हुए ख्वाबों के 
चंद टुकड़े हैं,

ये आँखों में तैरते हुए ख्वाब 
बह ना जायें कहीं 
इस डर से 
पलकों को नहीं झपकाया मैंने,

बुत बनाकर जिस्म को अपने 
भीगीं आँखों में फिर 
इक ख्वाब सजाया मैंने,
लेकिन ये गीला गीला सा ख्वाब 
गल ना जाये कहीं 
किसी पुराने कागज़ के मानिन्द,
इस डर से 
अपनी गीली आँखों को 
जिन्दगी की झुलसती धूप में 
मैं रात भर सुखाती रही !



Thursday 2 May 2013

तुम हाँ तुम...

तुम 
हाँ तुम ही तो हो 
जो मुस्कुराते हो मेरी आँखों में 
झिलमिलाते हो मेरी 
पलकों में,

तुम 
हाँ तुम ही तो हो 
जो कह जाते हो अनकही सी 
बातें कई 
यूँ  ही बातों बातों में,

तुम 
हाँ तुम ही तो हो 
जो छू जाते हो मुझे 
सबा की सूरत,

तुम 
हाँ तुम ही तो हो 
जो मिल जाते हो मुझे 
ख़्वाबों ख्यालों की राहों में 
कई गुमनाम सवालों में,

तुम 
हाँ तुम ही तो हो 
जो हो हर घड़ी शामिल 
मेरे जहन ओ दिल 
की तकरारों में,

तुम 
हाँ बस तुम ही हो 
मेरी धड़कनों की रफ्तारों में 
मेरी रूह की तासीर 
मेरे सुकून 
मेरे एहसासों में !



मेरे दिल-ए-नादाँ...


मेरे दिले नादां ...
ये तेरी कैसी तमन्ना है 
क्यूं तू इस कदर 
खुद पर जुल्मों सितम ढाता है,

 क्यूं पटकता है सर 
उन दरख्तों पर 
जिनकी दीवारें 
ना जाने कब से खामोश हो चुकीं हैं,

 नहीं है सुनवाई कोई 
तेरे इन बेकीमती जज्बातों की,

नहीं है मोल कोई 
तेरे इन अश्कों का 
जो बी बेसुध बेवजह 
ना जाने क्यूं बहते हैं,

तेरी दीवानगी का असर 
अब उस पर नहीं 
तू भी ये जिद्द छोड़ दे 
वक़्त के बहाव का मुख ना मोड़ 
अब ये दीवानगी छोड़ दे 
मेरे दिले नादां ...!

Monday 29 April 2013

कुछ नहीं लिख पायी आज तुम्हारे लिए...

सुबह से हूँ इस सोच में 
लिखूं कुछ खास तुम्हारे लिए 
जो हो सिर्फ तुम्हारे लिए 
यूँ ही बीत गए सारे पहर,

पर सारे ख्याल अलसाये ही रहे 
कुछ नहीं लिख पायी आज तुम्हारे लिए 
धड़कनें भी सुस्त पड़ी हैं कब से 
एहसास भी गुदगुदाए नहीं आज,

शाम भी बोझिल बोझिल सी 
आयी और मुंह छिपा कर चली गयी 
और अब रात के इस पहर में 
बैठी थी चाँद के इंतज़ार में,

वो आएगा और कुछ नज़्म 
सुना जायेगा 
सुन कर उसे कुछ नज़्म 
मेरा दिल भी गुनगुनाएगा,

पर वो भी नहीं आया आज
पेड़ की टहनी के पीछे  
वो भी कहीं मुंह फुलाए 
बैठा है,

बीत गया ये पहर भी
कुछ भी नहीं लिख पायी  
आज तुम्हारे लिए ...



Saturday 27 April 2013

वो ख्वाब...

आज एक ख्वाब जलाया मैंने,

वो ख्वाब जो बरसों से
कुछ कागज़ के पन्नों पर
न जाने कब से छुपा था,

धुंआ धुंआ हुआ वजूद उसका
बस कुछ राख के कतरों सा
मेरी आँखों के सामने पड़ा है,

पर मेरी इन खुश्क आँखों में
अश्क का इक कतरा भी नहीं,

पर वो ख्वाब...
 सुलग रहा है उस राख के ढेर में,

जैसे कह रहा हो मुझसे
क्या यही था वजूद मेरा
जो तूने मिटा डाला,

अब न आऊंगा तेरी इन आँखों में
अब मैं इस राख का कतरा हूँ !

Friday 26 April 2013

नन्हीं सी चिड़िया...

मुंडेर पर बैठी नन्हीं सी चिड़िया 
फुदक रही है इधर से उधर 
ढूंढ रही है जाने क्या 
तकती है कभी इधर कभी उधर,

कल रात चली थी आँधी 
ओह टूट गया है घोंसला इसका 
बिखरे हुए सपनों को अपने 
चुन रही है कभी इधर कभी उधर,
 
किससे कहे किसे बताये 
अपना दुःख किसे सुनाये 
चुपचाप मुंडेर पर बैठी 
देख रही है नीला आसमां,

क्यूँ चली कल रात ये आँधी 
क्यूँ टूटा उसका आशियाँ 
कौंध रहे नन्हे मन में उसके 
ना जाने ऐसे कितने अनगिनत सवाल,

गुमसुम सी बैठी 
सोचती ही रही 
फिर उड़ गयी कहाँ 
नन्हीं सी चिड़िया !

खवाबों में चले आना...

ख्वाबों में चले आना 
यूँ मुझसे लिपट जाना 
पलकों के दरीचे से 
यूँ दिल में उतर आना,

महसूस करती रहूँ ताउम्र तुझको 
यूँ मेरे बिस्तर की 
सलवटों में सिमट जाना,

चुपचाप चले आना 
मुझमें सिमट जाना 
पलकों के दरीचे से 
यूँ दिल में उतर आना !

Wednesday 24 April 2013

ये खिड़की...

बहुत दिनों बाद खुली है यह खिड़की 
जिसके दरवाजे बंद थे ना जाने कब से 
इसके झरोखे से लगता है 
कब से बोझिल सी चुपचाप 
राह जोट रही थी ये,

आज एक सुकून मिला है इसको 
आज सुनायी दे रहीं हैं आवाजें 
इस खिड़की के पार से,

कहीं कुछ बच्चों की 
जो खेल रहे हैं छुपन छुपाई 
कहीं कुछ मंत्रों की 
जो गूँज रहे हैं मंदिर के आँगन में,

तो कहीं कुछ आवाजें हैं उस माँ की 
जो खिड़की के पास है खड़ी 
देख रही है बच्चों को अपने 
खिलखिलाते हुए चहचहाते हुए ,

और कुछ आवाजें हैं उन पंछियों की 
जो लौट रहे हैं अपने घरों को 
खुले आसमां में फड़फड़ाते हुए 
अपने परों को,

ये आवाजें रस घोल रही हैं कानों में 
आज गुमसुम है मगर 
मुस्कुरा रही है यह खिड़की !


Sunday 21 April 2013

बस तुझे ही चाहना चाहती हूँ...

ना जानूं ये क्या रब्त है तुमसे 
ना जानूँ ये कैसी हैं नजदीकियां 
ना जानूं क्या है इन्तिहाँ मेरे इश्क़ की 
ना जानूं ये कैसी हैं मदहोशियाँ,

बस तुझमें ही गुम हो जाना चाहती हूँ 
बस तुझे ही पाना चाहती हूँ 
तेरी पलकों को अपनी पलकों से छू कर 
तेरी साँसों में घुल जाना चाहती हूँ,

ना जानूं ये ख्वाब हैं मेरे या हकीकत 
ना जाने कभी ये सच होंगे भी या नहीं 
फिर भी हर ख्वाब सजाना चाहती हूँ 
तुझे हर पल बस चाहना चाहती हूँ,

तुझे अपनी बाहों में भर कर 
धड़कनें दिल की सुनना चाहती हूँ 
तुझमें ही गुम हो जाना चाहती हूँ 
बस तुझे ही चाहना चाहती हूँ !

जीते हैं वो भी...

बच्चे हैं बिलखते 
माँ भी नहीं सोती 
छुपछुप कर उनसे 
वो भी चुपचाप है रोती 
जीते हैं वो भी 
जिनके घर रोटी नहीं होती 
मासूम को अपने 
आँचल में छुपा कर 
होठों पर अपने 
नकली सी मुस्कान सजाकर 
लोरी में नये नये नगमें है पिरोती 
सुलाती है बच्चों को 
पर खुद नहीं सोती 
जीते हैं वो भी 
जिनके घर रोटी नहीं होती !

मासूम सा बचपन...

कांधे पर डाले बोझ वो जिन्दगी का 
तपती धूप में चलता
 मासूम सा बचपन  
बेचैन सी आँखों से 
देखता सभी को 
चुपचाप से बीनता टुकड़े प्लास्टिक के 
झोली में डालकर अपनी 
फिर आगे बढ़ जाता 
इधर उधर सभी से नज़रें चुराता 
चुप्चाप चलता जाता 
मासूम सा बचपन 
हँसते खिलखिलाते दूसरे बचपन को देख 
दिल ही दिल में मुरझाता 
टूटता जाता 
फिर भी 
दो जून रोटी के लिए 
चुपचाप से बीनता टुकड़े प्लास्टिक के
मासूम सा बचपन

कांधे पर डाले बोझ वो जिन्दगी का 
तपती धूप में चलता 
मासूम सा बचपन .

जाने क्या बात हुई...

आज जाने ये क्या बात हुई
यूँ लगा दिन में रात हुई
कोई दौर बदला
या बदली हैं फिजायें सभी
तुम्हें छू के आयीं हैं
सर्द सर्द हवाएं सभी
दिल में लहराता है
हर लम्हा मखमली
मुझे छू जाता है
ये एहसास...
तू संग है तू है यहीं कहीं
हर आहट पे रुक जाती हूँ
तुझे छूती हूँ पर
छू नहीं पाती हूँ
रुकते रुकते क़दमों से
 बढ़ जाती हूँ
हर लम्हा अश्क की बरसात हुई
पर ये क्या बात हुई
क्यूँ लगा दिन में रात हुई !

मुठ्ठी भर आकाश...


आँचल में समेत लूँ
वो मुट्ठी भर आकाश
तमन्नाओं के सागर सा
आशाओं के दर्पण सा
मुझमें कल कल करती
बहती उस नदी सा
अंधेरों को चीरता
रौशनी से ओत पोत
मुझमें ही कहीं
मुझको ही ढूंढता
संवेदनाओं को उजागर करता
आहटों को सुनता
 मेरे सपनों का संसार
आँचल में समेत लूँ
वो मुट्ठी भर आकाश !

सफ़ेद चादर सी जिंदगी...

सफ़ेद चादर सी जिन्दगी
एक दम कोरी
जिसको रंगना चाहा
हसीन लम्हों से
रंगीन सपनों से
नन्हीं नन्हीं लकीरें उकेरनी चाही
छोटे छोटे पलों से
नाज़ुक सी कलियों से सजाना था
खूबसूरत सी एक कलाकृति बनाना था
पर...
रंगीन सपनों के रंग धूमिल हो गए
चिंगारियां सुलगी
लम्हों में सुराग हो गए
नाज़ुक सी सभी कलियाँ मुरझायीं
जिन्दगी की चादर पर
कैसी ये कलाकृति बनायी !



यूँ फ़ना हो जाना चाहती हूँ...

खुद में ही गुम हो जाना चाहती हूँ
आज फिर कहीं खो जाना चाहती हूँ
आहटें भी ना सुनाई दें मेरी
यूँ फ़ना हो जाना चाहती हूँ

घुटता है खुद में ही दम मेरा
चुभता है मुझमें ही कुछ मेरा
थकनें लगीं हैं ये सांसें मेरी
अब चुपचाप सो जाना चाहती हूँ

कहाँ कहाँ से टूटा है
कतरा कतरा मेरी रूह का
धज्जी धज्जी बिखरा पड़ा
जज्बा मेरे जुनून का

ना दो अब सदाएं मुझे कोई
अब बस खामोश हो जाना चाहती हूँ
आहटें भी ना सुनाई दें मेरी
यूँ फ़ना हो जाना चाहती हूँ!

रात के सन्नाटों में...


रात के सन्नाटों में
दब गयीं चीखें सभी

सहमी सहमी सी खामोश
बस चुपचाप सी
एक सिरहन के साथ टूटी
टूट कर बिखरी रही

कौन सुनता आवाज़े सन्नाटों की
कौन था जो महसूस करता
वो खामोश चीखें

जो दिन रात बस 
सुर्ख आँखों के रास्ते
निकलती रहीं

सुलगती रही अंगारों सी
पर सिसकी नहीं कहीं
दफ्न हो भी जाती
फिर भी...

तन्हा तन्हा सी
अपने ही अन्दर
सिसकती रही !


नन्हें नन्हें लफ्ज़...

सोच के दरवाज़े से झांकते हैं
नन्हे नन्हे लफ्ज़
कुछ सकुचाते कुछ इतराते
कुछ जिन्दगी को टटोलते
कुछ मासूम कुछ नटखट लफ्ज़
नन्हे नन्हे हाथों से थामते
उँगलियाँ मेरी
बहलाते कभी मन
कभी रूठ जाते ये लफ्ज़
दे जाते कभी उमंग जिन्दगी को
कभी मायूस कर जाते
ये लफ्ज़
सोच के दरवाज़े से झांकते हैं
 नन्हे नन्हे लफ्ज़ !


Sunday 14 April 2013

तस्वीर हो गया...

तस्वीर बनाते बनाते खुद तस्वीर हो गया
वो शख्स मुझे कितना अजीज हो गया

आँखों में बंद था मोती बनकर
जाने कैसे मेरे आरिज़ पे ढलक गया

आज क्यूँ ये आँखें खाली खाली हैं
कौन सा मेहमां आज रुखसत हो गया

शरारत भरी बातों से देता था दिल पे दस्तक
मेरे दिल को वो कितना सूना कर गया

जिस्म में कोई हरकत होती नहीं जाने क्यूँ
रूह बनकर रह रहा था कोई
जाने कहाँ खो गया

खुद को देखती हूँ बड़े गौर से
सब कुछ ठीक ही लगता है

फिर ये कौन सा हिस्सा है
जो मुझमें कम हो गया !

Friday 22 February 2013

बहुत याद आ रहे हो तुम...

कुछ तो ख़ास है इस सुबह में आज
आज बहुत याद आ रहे हो तुम
दिल में उमड़ रहे हैं ख्यालात  कई
बहुत याद आ रहे हो तुम ...

क्या है ख़ास जो दिल ढूँढता है
हर मंजर में तुझे
महसूस करता है इन हवाओं में तुझे
जो छू लेती हैं तो छूता है हर लम्स तेरा

महसूस कर रही हूँ बंद पलकों से तुझे
मुझे छू जा रहे हो तुम
बहुत याद आ रहे हो तुम
बहुत याद आ रहे हो तुम ...