Monday 29 April 2013

कुछ नहीं लिख पायी आज तुम्हारे लिए...

सुबह से हूँ इस सोच में 
लिखूं कुछ खास तुम्हारे लिए 
जो हो सिर्फ तुम्हारे लिए 
यूँ ही बीत गए सारे पहर,

पर सारे ख्याल अलसाये ही रहे 
कुछ नहीं लिख पायी आज तुम्हारे लिए 
धड़कनें भी सुस्त पड़ी हैं कब से 
एहसास भी गुदगुदाए नहीं आज,

शाम भी बोझिल बोझिल सी 
आयी और मुंह छिपा कर चली गयी 
और अब रात के इस पहर में 
बैठी थी चाँद के इंतज़ार में,

वो आएगा और कुछ नज़्म 
सुना जायेगा 
सुन कर उसे कुछ नज़्म 
मेरा दिल भी गुनगुनाएगा,

पर वो भी नहीं आया आज
पेड़ की टहनी के पीछे  
वो भी कहीं मुंह फुलाए 
बैठा है,

बीत गया ये पहर भी
कुछ भी नहीं लिख पायी  
आज तुम्हारे लिए ...



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