Sunday 28 October 2012

कैसा है यह मोहपाश...

मेरे अधरों पर उसके अधरों की प्यास
कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश,

ज्वलित ह्रदय अंतस में पीड़ा
भीगीं पलकें अंतर्मन भीगा
द्रवित होता नहीं जाने क्यूँ
निष्ठुर मन उसका नहीं पड़ता ढीला,

फिर भी करता उसको ही स्मरण
सुनता नहीं जो ह्रदय की पुकार
कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश,

जीवन का यह है सरमाया
लम्हा लम्हा संजोया
हर एक पल
हर एक ख्वाब सजाया,

एक एक मोती संजोकर नयनों में
अथाह समंदर उसको बनाया
जान सका न वह इसकी गहराई
जिसे निज जीवन प्राण बनाया,

कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश !


खामोश लम्हों को चीरती हुई...

खामोश लम्हों को चीरती हुई
अभी अभी गुजरी है
एहसास की कटीली लहर

जिन्दगी बदल रही है
मंज़र भी हैरां हैरां से हुए हैं

और ये आँखों के करीब से
गुज़रता हुआ अजनबी सा ख्वाब

यकीं दिलाता रहता है हर पल
नहीं हूँ मैं अजनबी

मगर फिर भी
इन पथराई सी आँखों को
यकीं आता नहीं
दिल मेरा मुस्कुराता नहीं

खामोश है न जाने कब से
जुंबिश भी कोई होती नहीं

है बस इतनी सी खबर
जिन्दगी बदल रही है
मंज़र भी हैरां हैरां से हुए हैं!

Sunday 14 October 2012

खुला खुला आसमान...

खुला खुला आसमां
खुला खुला हर एहसास
कुदरत के नजारों में पाया
ख़ूबसूरती का हर एक राज़

उगते सूरज की लालिमा
ठंडी ठंडी वादियाँ
सुनहरी लगती हर एक शाम
रेशम में लिपटी हर एक रात

दूर उड़ते अब्र के टुकड़े
बाहों में आने को बेताब
इठलाती सर्द हवा ये बोले
छू सको तो छूलो मुझे एक बार

पल पल रंग बदलता मौसम
खेल रहा आँख मिचौली
रिमझिम रिमझिम बारिश की बूँदें
साथ हमारे वो भी हो लीं

जमीं हो आसमां पर
आसमां हाथों में हमारे
कितने सुन्दर कितने प्यारे
ये सारे जन्नत के नज़ारे !

Thursday 6 September 2012

वो मोड़...

वो मोड़,

जिससे मुड़ते वक़्त तुमने
इक बार मुझे मुड़ कर नहीं देखा

आज भी गुजरता है वो मंज़र
मेरी आँखों के रास्ते से

आज भी रूह मेरी छटपटाती है
तेरा इक लम्स पाने को

आज भी धड़कनें मचल जाती हैं
सुनने को तेरी सदा

जानती हूँ मैं ये भी
गुज़रा वक़्त लौटता नही कभी

रेत की तरह जो फिसला है
मेरे हाथों से
अब न समेत पाऊँगी में उसे कभी

फिर भी ये आँखें नम हो जाती हैं
याद जब तेरी आती है

फिर जां पे बन आती है
याद जब तेरी आती है !

Wednesday 5 September 2012

कोई चुपचाप दबे पाँव आकर...

कोई चुपचाप दबे पाँव आकर
मेरे दिल की तरंगों से
 लिपट जाता है

और कभी देता है दस्तक
रूह को 
फिर साँसों से उलझ जाता है

दिल की जमीं पर
अपना सर रखकर
कुछ देर वो
आँखें मूँद कर सो जाता है

यादों को झंझोर कर सारी
फिर ख्यालों से होकर
गुज़र जाता है

उसके आने और जाने का सफ़र
चुपचाप मैं महसूस किया करती हूँ

वो फिर आएगा दबे पाँव
इस उम्मीद में
उसकी मुन्तजिर रहा करती हूँ !

Tuesday 4 September 2012

अब्र का इक कारवां..

बढ़ता चला आ रहा था
वो अब्र का इक कारवां
लहराती सर्द सबा के साथ
बह रहा था आँखों के आगे
खो रहे थे उसके निशां
कुछ देर में वो बह गया
दूर नीले गगन में अपने
चन्द निशां छोड़ गया
और तभी इक अब्र का टुकड़ा
मेरे पहलू में गिरा
वो मुझे भिगोने लगा
ख्वाबों को मेरे धोने लगा
वहम की जो गर्द थी
पर्त पर्त वो बहने लगी
सब कुछ उजला होने लगा
मेरा 'मैं' मुझमें खोने लगा
आँखों में फैली रौशनी
जैसे सवेरा हो गया !

तेरी वो मुरझाई सी आँखें...

तेरी वो मुरझाई सी आँखें
जो अब भी जिन्दगी को ढूंढा करती हैं
बेबस से तेरे वो लरजते होंठ
जो प्यासे हैं
जिन्दगी की मिठास पाने को

मुझे अफ़सोस है इसका
में कुछ भी तेरे लिए कर सकती नही
तेरी इन डबडबाई सी आँखों में
रौशनी की इक किरण भी भर सकती नहीं

रूह मेरी बस छटपटाकर रह जाती है
सांसें सुलगती हैं
आँखें बरस कर रह जाती हैं

क्यूँ ये इंसान ही इंसानियत के दुश्मन हैं
क्यूँ मसल देते हैं
इन नाज़ुक सी कलियों को
जो खुल के जीना चाहती हैं

यूँ तो जीती हैं ये इन काँटों के साथ उम्र भर
और फिर मुरझा जाती हैं
ख़त्म हो जाती हैं

फिर भी इनको कोई एहतराज़ नहीं
अपने वजूद से अपनी जिन्दगी से
ये तो आती ही हैं जहाँ में
अपनी खुशबू फैलाने के लिए !

Sunday 26 August 2012

जिस तरह सताती है तेरी याद मुझको...

जिस तरह सताती है तेरी याद मुझको
तुझे भी मेरी याद आती तो होगी

ये बर्क सी कौंधती जाती है सीने में
तेरे दिल में भी नश्तर चुभाती तो होगी

कुछ ख्याल तेरे बेखुद हुए जाते तो होंगे
प्यास लबो पे मचल जाती तो होगी

छू लूँ तुझे आँखों से अपनी
भर लूँ तुझे अपनी बाहों में
ये चाहत तुझे भी गुदगुदाती तो होगी

तुझे भी मेरी याद आती तो होगी...
तुझे भी मेरी याद आती तो होगी !

Tuesday 21 August 2012

तन्हाई में अक्सर जब हम...

तन्हाई में अकसर जब हम
बातें तुमसे करते हैं
चुपके चुपके पलकों की ओट से
तुमको देखा करते हैं

मीठी मीठी बातें तुम्हारी
मुस्कराहट होठों  पे लाती हैं
दिल के सब जज्बात उमड़ कर
आँखों से बहने लगते हैं


उफ़ उस नाज़ुक से इक पल में
कितनी बेबस हो जाती हूँ
काँधे पे सर रख कर तुम्हारे
आँखें मूँद कर सो जाती हूँ 


फिर उस सपनों की नगरी में
तुम मुझसे मिलने आते हो
देकर खुशियाँ दिल को मेरे
ना जाने कहाँ खो जाते हो...

हैं ये कितने खूबसूरत से पल
जो हैं तेरे प्यार से रौशन
सपने के जैसे हैं
पर हैं ये मेरे
ये पल
जो हैं तेरे प्यार से रौशन !

झिलमिलाती हुई पलकों से...


झिलमिलाती हुयी पलकों से
ओस जब टपकी
लब थरथराये पर कुछ कह न पाए

खामोश थी जुबां
तूफां था निगाहों में
आँखों ने किये हाले दिल बयां
जिसे तुम सुन न पाए

बोझिल सी निगाहों से
तुमको जो किया रुखसत
टूट गए हम फिर सिमट ना पाए

सुकून-ए-दिल खोया
धड़कनें भी रूठीं
सांसें भी रुकी पर
हम मर न पाए

बेजान से एक बुत को जान तुमने दी थी
जान फिर जब निकली तो बेजान हो ना पाए

Sunday 19 August 2012

जिंदगी...

छूता है हर लफ्ज़ तेरा
कभी फूल बनकर कभी खार
ले आता है होठों पर
कभी मुस्कान तो कभी
भर देता है अश्क आँखों में

खुद से उलझती रही बेवजह
मैं दीवानी सी होकर मगर
आज झांकती हूँ बीते पन्नों में तो
हर हर्फ़ नाराज़ हर पल नाखुश

ये किस वहम में गुज़र रही थी जिन्दगी
आज सोचूं तो बस अँधेरे ही नज़र आते हैं

सांस बोझल सी टूटती रही पर
टूटी नहीं अटकी अटकी सी
फंसती ही रही सदा

और इस वहम में जीते रहे 
कि जिन्दा हैं हम जिन्दगी
तू भी हंसती होगी कहीं ना कहीं
देखकर हालत मेरी

किस तरह जिया है तुझको मैंने
बस हाथों से तू रेत बनकर
फिसलती ही रही !


अपनी तहरीर में...


अपनी तहरीर में उकेरे हैं जज्बात सभी
अपनी खामोशी में संजोये हैं अल्फाज़ सभी

अपनी यादों में कैद कर लिए सारे
गुज़रे हुए लम्हात सभी 

बोलती आँखों का सबब ना समझे कोई
लफ़्ज़ों का करते हैं मोलभाव सभी 


हर शक्स अपने आप में अधूरा है
पूरा होने की करते हैं चाह सभी 


यहाँ किसे मुकम्मल जहाँ मिलता है
अधूरी है कहीं कोई ख्वाहिश
अधूरा है कोई ख्वाब कहीं 


जिसे देखो वो चाँद छूने की कोशिश में है
सितारों का कहाँ करता है ख्याल कोई


लौट आते हैं हर बार उसकी बज़्म में जाकर
नहीं मिलता अब उसका नामो निशाँ कहीं 


मुस्कुराती पलकों का हुनर तो देखो
इनमें हैं जब्ज टूटे हुए ख्वाब सभी !

ऐसा लगता है...

ऐसा लगता है 
मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है
एक धुंधलके से ख्वाब के पार
जहाँ तुम अपनी तन्हाई मिटाने आया करते थे 

कुछ ख्वाबो को अपनी पलकों पे बसा कर
चुपचाप मुस्कुराया करते थे 


इस झील के साये में तुमने
कुछ लफ्ज़ दोहराए थे बार बार
समझ कर उन लफ़्ज़ों के इशारे
कुछ कँवल मेरी ओर खिचे चले आये थे 


उन हसीं कंवलों को जो छूआ मैंने
एक नूर मेरी रूह में दाखिल हुआ
रोआं रोआं मेरा जैसे रोशन हुआ
हाँ शायद ...
यही झील का किनारा था
जहाँ तुम्हें मैंने पहली बार देखा था !

Tuesday 7 August 2012

ख़ामोश दिल की तनहाइयाँ बोलती हैं

खामोश दिल की तन्हाईयाँ  बोलती हैं...

खामोश दिल की तन्हाइयां बोलती हैं
कोई नहीं सुनता जब परछाइयां बोलती हैं,
टूट रहा जो मुझमें ये क्या है
समझ ना पाऊं मैं
गुमसुम हैं निगाहें मेरी
फिर किसकी सदाएं बोलती हैं,
भींग जाती हैं पलकें यादों में तेरी
तकती रहती हैं तेरा रास्ता
उमड़ रहा है तूफां सा दिल में
धड़कनों की झनझनाहट बोलती हैं,
टूट रहा है जो दफ़्न हो जायेगा मुझमें
चुपचाप गुम हो जायेगा मुझमें
ना होती है दस्तक दिल पे कोई
ना जुंबिश होती है कहीं
हर सू हैं छाई खामोशियाँ
बस सन्नाटों की सदाएं बोलती हैं !

Monday 6 August 2012

ऐ चाँद...

ऐ चाँद,
तू भी है तन्हा
मैं भी हूँ तन्हा,
मुझे तो है उसका इंतज़ार
पर तू किस इंतज़ार में गुम है
कितने ही सितारे लिपटे हैं तेरे आस पास
फिर तू तन्हा क्यूँ है,
क्या तू भी है भीड़ में तन्हा मेरे जैसा
तो फिर तू मेरे पहलू में आ
आ हम कुछ बातें बाँट लें
ये काली अँधेरी रात है फैली
मिलकर ये अँधेरी रात काट लें !


Sunday 5 August 2012

ये शम्मअ...

ये शम्मअ अब ना होगी कभी रौशन
गुलशुदा हो चुकी है ये भी मेरी तरह
दूर से तो लगता है
बस अभी जल उठेगी
जगमगाएगी अभी शम्मअ- ए-आरज़ू की लौ
पर मिट चुकी है ये भी मेरी तरह
बस बुत है चन्द उम्मीदों का
ना पिघलती है ना सिसकती है
इक सांस भी बाकी नहीं
बस चुपचाप है खड़ी
तकती हुई निगाहों से
ढूंढ रही है कुछ यहीं
जुस्तजू क्या है इसकी
बयां भी कर सकती नहीं
खामोश हो चुकी है ये भी मेरी तरह
ये शम्मअ अब ना होगी कभी रौशन !

मेरी तन्हा तन्हा सी रातों को...

मेरी तन्हा तन्हा सी रातों को जब
तेरी मखमली सदा का सहारा मिला
लम्हा लम्हा डूबा मेरा ख़्वाबों में 
मुझे जीने का इक बहाना मिला

यूँ तो ये जिन्दगी
तेरे तसव्वुर के बिना भी गुजर सकती थी
यूँ तो ये सियह रातें
इन जगमगाते तारों के साथ भी
कट सकती थीं

पर तुम जो मिले तो लगा
इक ख्वाब बरसों पुराना मिला
मेरी तन्हा तन्हा सी रातों को
मेरा अपना इक सितारा मिला !

आँखों में तैरते हैं जो...

आँखों में तैरते हैं जो 
 पानी के मानिंद 
आंसू  नहीं हैं ये 
ये टूटे हुए ख्वाबो के 
चंद कतरे हैं,

ये आँखों में तैरते हुए ख्वाब 
बह ना जाएँ इस डर से 
पलकों को नहीं झपकाया मैंने,

बुत बनाकर जिस्म को अपने 
भींगी आँखों में फिर 
इक ख्वाब सजाया मैंने,

लेकिन ये गीला गीला सा ख्वाब 
गल ना जाए कहीं 
किसी पुराने कागज़ के मानिंद 

इस डर से...

अपनी गीली आँखों को 
जिन्दगी की झुलसती धूप में 
मैं रात भर सुखाती रही !


Saturday 4 August 2012

सहमा सहमा दिल मेरा



सहमा सहमा  ये दिल मेरा ...

सहमा सहमा ये दिल मेरा  
तन्हाई में यूँ  घबराता है  
टूटे हुए टुकड़ों को बस 
समेटता रह जाता है, 
ता उम्र भटकता रहा 
जाने कैसी थी जुस्तजू  
ठोकर खाए जो लौटा 
हाथ खाली देखता रह जाता है,
नश्तर चुभे हैं जो
गमजदा माझी के तुफ़ैल 
दाग उनके देख
अपने हाल से डर जाता है 
सहमा सहमा ये दिल मेरा 
तन्हाई से अब घबराता है !

Tuesday 31 July 2012

इक सदा पे तेरी ...

इक सदा पे तेरी 
यूं पिघल जाती हूँ मैं 
तू प्यार की तपिश 
और मैं ...
मोम की गुड़िया हूँ जैसे 


शाम ढलती है जब...

शाम ढलती है जब
और जब तारे मुस्कुराते हैं
पलकों पे तेरी यादों के
चंद अश्क उभर आते हैं
नहीं हूं तन्हा मगर फिर भी
उदास है दिल
किस सोच में गुम है ना जाने
किस तलाश में है दिल
अब तुम आओ तो
मुस्कुराने की वजह मिले
फिर कोई गीत
गुनगुनाने की वजह मिले
ये शाम भी आती है चुपचाप
और चुपचाप ही ढल जाती है
अब ना ये कोई ख्वाब
मेरी आंखों में लाती है
ये मंजर भी मुझे मेरी तरह
गुमसुम ही नजर आते हैं
जब ढलती है ये शाम
और जब तारे मुस्कुराते हैं !

Monday 30 July 2012

आंसू...

आंसुओं के गिरने की आवाज़ कहां होती है
टप से गिर जाते हैं बस
बिना कोई शोर मचाये
क्यूं इनके साथ ये दर्द भी बह जाता नहीं
सुलगता रहता है हर पल दिल में
सांस के साथ बाहर निकल जाता क्यूं नहीं !

Sunday 29 July 2012

कल रात...

कल रात जब टूटीं थी सांसे
दिल से उठा था धुआँ सा
जाने कहां लगी थी आग
बुझा ना पायी जिसे अश्क की बरसात,
कल रात जब जिस्म से जां जुदा हुई
लगा यूं कि जिन्दगी खो गयी
बुझ गये सारे दीये अरमानों के
दिल की मेरे चांदनी खो गयी,
कल रात जब डुबोया इन जज्बातों ने मुझको
उलझनों की गहराई में जाकर छोड़ दिया
और जहन मेरा पटकता रहा अपने हाथ पैर
फिर भी ना मिल सका बाहर निकलने का रास्ता,
कल रात जब टूट गयीं सब्र की सारी हदें
खुद पर रहा ना बस मेरा
बहा ले गया ये तूफां मुझको
ना मिल सका मुझे फिर अपना पता !

मुझको भी दो पंख लगा दो...


मुझको भी दो पंख लगा दो
पंछी बनकर उड़ जाऊँगी
रस्मों कसमों की ये कैद तोड़कर
तेरे पास चली आऊँगी
इन बंधनो में बंधे बंधे
जी मेरा घबराता है
अपना खुला आसमां देखने को
मन मेरा ललचाता है
छोड़ कर ये सारी दुनिया
दूर कहीं उड़ जाऊँगी
मुझको भी दो पंख लगा दो
पंछी बनकर उड़ जाऊँगी !

तुम मिलो चाहे न मिलो...

तुम मिलो चाहे ना मिलो
ये चाहत तुम्हारी मेरे दिल में
सदा यूं ही रहेगी
ये दिल में उठती जज्बात की लहरें
यूं ही उठती रहेंगी ,
तुम मिलो चाहे ना मिलो
ये आंखें जो तेरी
इक नज़र की मुन्तज़िर हैं
ये जो बरबस यूं ही छलक जाया करती हैं
इन आंखो की नमी
यूं ही रहेगी ,
तुम मिलो चाहे ना मिलो
तुम्हारे एहसास जो मेरी रुह को
हर वक़्त तरोताज़ा रखते हैं
तुम्हारे ख्याल जो जहन को
गुदगुदाया करते हैं
यूं ही रहेंगे ,
तुम मिलो चाहे ना मिलो
ये सबा जो तेरा स्पर्श बनकर
मुझे छू जाया करती है
ये कानो में कुछ गुनगुनाया करती है
यूं ही बहती रहेगी ,
तुम मिलो चाहे ना मिलो
ये रिमझिम सी बौछारें
छम छम करती तुम्हें याद दिलाया करती हैं
ये हर पल गीत नया सुनाया करती हैं
यूं ही बरसती रहेंगी ,
तुम मिलो चाहे अब कभी ना मिलो
तुम्हारी धड़कन मेरे दिल में
यूं ही धड़कती रहेगी !