Sunday 21 April 2013

बस तुझे ही चाहना चाहती हूँ...

ना जानूं ये क्या रब्त है तुमसे 
ना जानूँ ये कैसी हैं नजदीकियां 
ना जानूं क्या है इन्तिहाँ मेरे इश्क़ की 
ना जानूं ये कैसी हैं मदहोशियाँ,

बस तुझमें ही गुम हो जाना चाहती हूँ 
बस तुझे ही पाना चाहती हूँ 
तेरी पलकों को अपनी पलकों से छू कर 
तेरी साँसों में घुल जाना चाहती हूँ,

ना जानूं ये ख्वाब हैं मेरे या हकीकत 
ना जाने कभी ये सच होंगे भी या नहीं 
फिर भी हर ख्वाब सजाना चाहती हूँ 
तुझे हर पल बस चाहना चाहती हूँ,

तुझे अपनी बाहों में भर कर 
धड़कनें दिल की सुनना चाहती हूँ 
तुझमें ही गुम हो जाना चाहती हूँ 
बस तुझे ही चाहना चाहती हूँ !

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