Thursday 18 September 2014

पिघल ना जाऊं कहीं...

ना दिया करो यूँ सदायें मुझे 
कि पिघल ना जाऊँ कहीं,

वादे किये हैं जो दिल से मैनें 
उनसे मुकर ना जाऊँ कहीं,

ना आओ यूँ करीब 
कि कहीं घुल ना जाओ मेरी साँसों में,

ना देखा करो यूँ आँखों में मेरी 
कि रूह में ना उतर जाओ कहीं !

क्या दूँ तुमको...

आज और क्या दूँ तुमको 
इस यक़ीन के सिवा 
रहूँगी यूँ ही सदा तेरे पास में 
तेरे साये की तरह,

तेरी हँसी से जो आ जाती है 
मेरे होठों पे मुस्कुराहट 
तुझे देख कर जो मिल जाता है 
मेरे दिल को सुक़ून,

तेरी यादों से जो भींग जाती हैं 
जहन की दीवारें मेरी 
तेरी आहट से जो थम जाती हैं 
नज़रें मेरी,

ये सब हैं चश्मदीद उन पलों के 
जो गुज़रते हैं तेरे संग,

यही कुछ लम्हें हैं 
जो चुरा लेती हूँ वक़्त से,

कुछ सहेज़ लिए हैं मैनें 
कुछ तुम भी रख लेना !


Wednesday 17 September 2014

मेरे जज्बात सभी...

"मेरे ज़ज्बात सभी आँखों में उमड़ आते हैं 
नहीं देख पाती तुमको जी भर के 
कोई पढ़ ना ले कहीं 
तुम्हें मेरी आँखों में 
इस ख्याल से... 
पलकें झुका लीं मैनें "

एक प्यास है मयस्सर...

तुमसे क्या करूँ उम्मीद-ए-वफ़ा मैं 
हवा के झोंके की मानिन्द 
छू कर गुज़र जाओगे तुम,

ये तल्ख़ियाँ तो हैं मेरी जीस्त में शामिल 
मुझे मेरी बेचैनियों में 
और डुबा जाओगे तुम,

इक प्यास है मयस्सर 
जो बुझती नहीं कभी 
इक तलब है 
जो ख़त्म होती नहीं कभी,

ये बेताबियाँ जो उफान लेती रहती हैं दिल में 
इनकी तो आदत है मचल जाने की,

किस उम्मीद में साँसें लेती रहूँ मैं 
ज़िस्म-ओ-जान नाउम्मीद हो चुके हैं 
ना जाने कब से,

इक आग है जो जलाती रहती है रूह को 
इक साँस है जो टूट पाती नहीं,

ना घेरा डालो 
मेरे जहन की दीवारों पर यूँ 
इसकी तो आदत है 
ख़्वाब सजाने की !

मेरे इश्क़ का हासिल तुम हो...

मेरे इश्क़ का हासिल तुम हो 
मेरा इश्क़ किसी की जागीर नहीं 
ना है उल्फ़त में बँधा दिल किसी की 
मुझे तो मुझसे भी मुहब्बत नहीं,

पाश-पाश हुआ है शीशा-ए-दिल मेरा 
रंज मुझको मगर फिर भी नहीं 
उठते हैं दिल से शरारे हर सू 
सुलगता मेरा जिस्म फिर भी नहीं,

ये किस तीरगी ने लपेटा है मुझको 
मुद्दतें हुईं आफ़ताब देखे हुए 
जागती रहती हैं मेरे साथ रातें मेरी 
सदियां हैं बीती सुबह का ख़्वाब देखे हुए!

तेरी नज़दीकियों का असर...

"तेरी नज़दीकियों का असर यूँ हुआ है मुझ पर 
तेरी छुअन का असर ना जाने क्या होगा 
जो मिल गए कभी तन्हाई में तुझसे
क्या होगा हश्र -ए -दिल खुदा जाने"

तेरी आँखें...


तेरी आँखें उतर गयीं जो दिल में 
संभल ना पायी इक पल मैं 
जादू से तेरे…

बेकाबू धड़कनें मेरी 
दौड़ रहीं थीं बेइख्तियारी में 
ना जाने किस खुमारी में ,

लौट आयी हूँ मगर 
तुझको लिए साथ 
भर लायी हूँ अपनी आँखों में 
सहेज कर लम्हें कुछ ख़ास ,

खुद ही कुरेदती हूँ उनको 
खुद ही मुस्कुराती हूँ 
लम्हा लम्हा जब तुझको 
अपने करीब पाती हूँ ,

तेरी छुअन से फैली हैं 
इक बर्क सी बदन में 
तेरे हाथों की गर्माहट से 
पिघलती रही पल पल मैं ,
समेट रही हूँ कतरा कतरा 
बह गया है जो 
जर्रा जर्रा मेरे बदन का ,

पर हूँ इस ख्याल में  
बह गयी हूँ ये किस बहाव में
 मैं हूँ पर... 
मुझमें ना रहा सबकुछ मेरा
डूब गया है हर पल मेरा
तेरे तसव्वुर तेरे एहसास में…!


दिल...


ना कब्ज़ा करो यूँ ख्यालों पर मेरे 
है बड़ा गुस्ताख़ ये दिल 
है बहुत ही सरफिरा 
ना आयेगा फिर हाथों में मेरे 
इक बार जो ये मचल गया !