गुज़र गये वो पलछिन
ढलते सूरज के संग बीतती शामें
लहराती हवाओं में साँय साँय आवाजें,
अभी कुछ लम्हा ही तो चली थी
कुछ पहर बिता के तेरे साथ
हाथ में लिये तेरा मखमली हाथ
जिसके स्पर्श मात्र से
सुकून हर कोने कोने में भर जाता था
हर रोयां रोयां बदन का खिल जाता था,
आज कुछ ऐसी ही ठंडक मिली है
हवाओं में कुछ वही बात है
निकल आयी हूँ कुछ दूर तेरे संग
छू रही हैं अलकों को ये ठंडी हवा
और ताज़गी दे रहा है चेहरे को
ये नूर तेरा,
जो बरस रहा है तेरी आँखों से
भिगो रहा है मेरा अंतर्मन
मेरे हर कदम पर बढता
तेरा हर एक कदम
मेरे हाथों में तेरा हाथ
और इन काली घटाओं से
उतरता हुआ माहताब,
ये सब गवाह हैं उन पलों के
जो बीत रहे हैं तेरे संग
जिन्दगी के गलियारे से
गुज़र रहे हैं ये पलछिन !