फुदक रही है इधर से उधर
ढूंढ रही है जाने क्या
तकती है कभी इधर कभी उधर,
कल रात चली थी आँधी
ओह टूट गया है घोंसला इसका
बिखरे हुए सपनों को अपने
चुन रही है कभी इधर कभी उधर,
किससे कहे किसे बताये
अपना दुःख किसे सुनाये
चुपचाप मुंडेर पर बैठी
देख रही है नीला आसमां,
क्यूँ चली कल रात ये आँधी
क्यूँ टूटा उसका आशियाँ
कौंध रहे नन्हे मन में उसके
ना जाने ऐसे कितने अनगिनत सवाल,
गुमसुम सी बैठी
सोचती ही रही
फिर उड़ गयी कहाँ
नन्हीं सी चिड़िया !
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