Sunday 21 April 2013

मासूम सा बचपन...

कांधे पर डाले बोझ वो जिन्दगी का 
तपती धूप में चलता
 मासूम सा बचपन  
बेचैन सी आँखों से 
देखता सभी को 
चुपचाप से बीनता टुकड़े प्लास्टिक के 
झोली में डालकर अपनी 
फिर आगे बढ़ जाता 
इधर उधर सभी से नज़रें चुराता 
चुप्चाप चलता जाता 
मासूम सा बचपन 
हँसते खिलखिलाते दूसरे बचपन को देख 
दिल ही दिल में मुरझाता 
टूटता जाता 
फिर भी 
दो जून रोटी के लिए 
चुपचाप से बीनता टुकड़े प्लास्टिक के
मासूम सा बचपन

कांधे पर डाले बोझ वो जिन्दगी का 
तपती धूप में चलता 
मासूम सा बचपन .

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