Sunday 21 April 2013

सफ़ेद चादर सी जिंदगी...

सफ़ेद चादर सी जिन्दगी
एक दम कोरी
जिसको रंगना चाहा
हसीन लम्हों से
रंगीन सपनों से
नन्हीं नन्हीं लकीरें उकेरनी चाही
छोटे छोटे पलों से
नाज़ुक सी कलियों से सजाना था
खूबसूरत सी एक कलाकृति बनाना था
पर...
रंगीन सपनों के रंग धूमिल हो गए
चिंगारियां सुलगी
लम्हों में सुराग हो गए
नाज़ुक सी सभी कलियाँ मुरझायीं
जिन्दगी की चादर पर
कैसी ये कलाकृति बनायी !



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