Tuesday, 5 May 2015

ख्वाबों की गठरी...

लम्हे भर को चली आयीं थीं खुशियाँ दिल में
सोचा था ये उम्र भर का सफ़र होगा
थामा था कस कर उन्हें गिरफ्त में अपनी
सोचा था अब ना उन्हें जाने दूंगी
जिन्दगी में फिर वीरानी छाने ना दूंगी 

लेकिन फिर भी छूट गया
वो खुशियों भरा लम्हा हाथों से मेरे
फिर वही सूनापन छोड़ गया
चला था जो हमराही बनकर
फिर सफ़र में साथ छोड़ गया 

अब इन ख्वाबों की गठरी
आँखों पर रखकर
भटक रही हूँ तन्हा तन्हा
उसकी तलाश में 

शायद वो मिल जाए कहीं तो
ये कुछ ख्वाब उसके नाम कर दूँ
इन आँखों का बोझ कुछ कम कर दूँ
तो शायद ...
इन्हें भी सुकून मिल जाए कुछ पल
इन्हें भी नींद आ जाए कुछ पल !

कुछ रिश्ते..


उस पल जब समेटा मेरी बेचैनियों को तुमने
उमर भर के लिए तुम दिल में उतर गए

क्या नाम दूँ इन एहसासों को मैँ
कुछ रिश्तों के शायद नाम नहीं होते...

Saturday, 14 March 2015

टांग रखे हैं सपने...


टांग रखे हैं खूंटी से सपने दीवारों पर
जब जी चाहे इन्हें देख लिया करती हूँ

कोई आ जाए कहीं इनसे मिलने 
इस ख्याल से...
हर रोज़ इन्हें साफ़ किया करती हूँ।।

Tuesday, 24 February 2015

लगता है तू आने को है...

उम्मीद की लौ जल रही अभी 
दिल भी मुस्कुराने को है 
लगता है तू आने को हैं 

खुशनुमा हैं वादियां ये नज़ारे सभी 
दिल कोई तरन्नुम गुनगुनाने को है 
लगता है तू आने को है 

बेवजह ही सही तुझसे झगड़ना भी है 
हाल-ए-दिल तुझे बयां करना भी है 

आँखों आँखों में दीदार तेरा करना भी है 
आँखें तेरी फिर कोई सितम ढाने को है 
लगता है तू आने को है 

मुदद्तें हुई तेरा दीदार किये हुए 
सदियाँ हैं बीती तेरा इंतज़ार किये हुए 
सब्र मेरा अब रंग लाने को है 
लगता है तू आने को है !

कुछ इशारे बचाये रखना...


आँखों के कुछ इशारे बचाये रखना 
कुछ मोती पलकों में छुपाये रखना 

मोहब्बत है जिंदगी हमने माना मगर 
कुछ लम्हे खुद के लिए सजाये रखना 

टूट कर चाहना किसी को दिल की फितरत ही सही 
पर खुद को संभाले रखो इतनी दूरी बनाये रखना 

ये चाहने वाले बड़े खुदगर्ज़ हैं ज़माने में 
खुद को न भूल जाना इतनी याददाश्त बनाये रखना !

Thursday, 18 September 2014

पिघल ना जाऊं कहीं...

ना दिया करो यूँ सदायें मुझे 
कि पिघल ना जाऊँ कहीं,

वादे किये हैं जो दिल से मैनें 
उनसे मुकर ना जाऊँ कहीं,

ना आओ यूँ करीब 
कि कहीं घुल ना जाओ मेरी साँसों में,

ना देखा करो यूँ आँखों में मेरी 
कि रूह में ना उतर जाओ कहीं !

क्या दूँ तुमको...

आज और क्या दूँ तुमको 
इस यक़ीन के सिवा 
रहूँगी यूँ ही सदा तेरे पास में 
तेरे साये की तरह,

तेरी हँसी से जो आ जाती है 
मेरे होठों पे मुस्कुराहट 
तुझे देख कर जो मिल जाता है 
मेरे दिल को सुक़ून,

तेरी यादों से जो भींग जाती हैं 
जहन की दीवारें मेरी 
तेरी आहट से जो थम जाती हैं 
नज़रें मेरी,

ये सब हैं चश्मदीद उन पलों के 
जो गुज़रते हैं तेरे संग,

यही कुछ लम्हें हैं 
जो चुरा लेती हूँ वक़्त से,

कुछ सहेज़ लिए हैं मैनें 
कुछ तुम भी रख लेना !