कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश,
ज्वलित ह्रदय अंतस में पीड़ा
भीगीं पलकें अंतर्मन भीगा
द्रवित होता नहीं जाने क्यूँ
निष्ठुर मन उसका नहीं पड़ता ढीला,
फिर भी करता उसको ही स्मरण
सुनता नहीं जो ह्रदय की पुकार
कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश,
जीवन का यह है सरमाया
लम्हा लम्हा संजोया
हर एक पल
हर एक ख्वाब सजाया,
एक एक मोती संजोकर नयनों में
अथाह समंदर उसको बनाया
जान सका न वह इसकी गहराई
जिसे निज जीवन प्राण बनाया,
कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश !