यूँ तो ज़माने में हमारे
दुश्मन बहुत हैं
मगर चीरते हैं दिल वही अक्सर
जो दिल में रहते हैं,
जख्म देकर
जहन की परत परत नोंच कर
आँख में क्यूँ हैं आँसू
अब सबब पूछते हैं,
यूँ तो शिकवा नहीं उनसे
शिकायत नहीं कोई
खंजर है उनकी फितरत
हम तो मरहम ढूंढते हैं,
इश्क़ मुहब्बत क़ुरबत में
कुछ भी हासिल नहीं यारों
ये तो वो जोंक हैं
जो धीरे धीरे दिल का
लहू चूसते हैं !