Saturday 28 September 2013

टूटे हुए ख्वाब...


आँखों में तैरते हैं जो 
पानी के मानिन्द 
आँसू नहीं हैं ये 
ये टूटे हुए ख्वाबों के 
चंद टुकड़े हैं,

ये आँखों में तैरते हुए ख्वाब 
बह ना जायें कहीं 
इस डर से 
पलकों को नहीं झपकाया मैंने,

बुत बनाकर जिस्म को अपने 
भीगीं आँखों में फिर 
इक ख्वाब सजाया मैंने,
लेकिन ये गीला गीला सा ख्वाब 
गल ना जाये कहीं 
किसी पुराने कागज़ के मानिन्द,
इस डर से 
अपनी गीली आँखों को 
जिन्दगी की झुलसती धूप में 
मैं रात भर सुखाती रही !



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