Sunday, 21 April 2013

मुठ्ठी भर आकाश...


आँचल में समेत लूँ
वो मुट्ठी भर आकाश
तमन्नाओं के सागर सा
आशाओं के दर्पण सा
मुझमें कल कल करती
बहती उस नदी सा
अंधेरों को चीरता
रौशनी से ओत पोत
मुझमें ही कहीं
मुझको ही ढूंढता
संवेदनाओं को उजागर करता
आहटों को सुनता
 मेरे सपनों का संसार
आँचल में समेत लूँ
वो मुट्ठी भर आकाश !

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