Saturday 28 September 2013

ढल गयी आज की ये शाम...


ढल गयी आज की ये शाम 
दे गयी कुछ ख्वाब आँखों में 

कुछ एहसास जिन्होंने 
छू लिया मुझको 

ना हुई कोई हलचल 
ना कोई आहट 

फिर भी जैसे कुछ 
समाया है मुझमें 

वो डूबता हुआ सूरज 
अभी तो था नज़रों के सामने 

हाँ अभी तो था 
ना जाने कहाँ डूब गया 

लेकिन फिर आएगा कल ये 
लेकर एक नयी सहर 
लेकर कुछ नये ख्वाब !

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