Sunday 26 August 2012

जिस तरह सताती है तेरी याद मुझको...

जिस तरह सताती है तेरी याद मुझको
तुझे भी मेरी याद आती तो होगी

ये बर्क सी कौंधती जाती है सीने में
तेरे दिल में भी नश्तर चुभाती तो होगी

कुछ ख्याल तेरे बेखुद हुए जाते तो होंगे
प्यास लबो पे मचल जाती तो होगी

छू लूँ तुझे आँखों से अपनी
भर लूँ तुझे अपनी बाहों में
ये चाहत तुझे भी गुदगुदाती तो होगी

तुझे भी मेरी याद आती तो होगी...
तुझे भी मेरी याद आती तो होगी !

Tuesday 21 August 2012

तन्हाई में अक्सर जब हम...

तन्हाई में अकसर जब हम
बातें तुमसे करते हैं
चुपके चुपके पलकों की ओट से
तुमको देखा करते हैं

मीठी मीठी बातें तुम्हारी
मुस्कराहट होठों  पे लाती हैं
दिल के सब जज्बात उमड़ कर
आँखों से बहने लगते हैं


उफ़ उस नाज़ुक से इक पल में
कितनी बेबस हो जाती हूँ
काँधे पे सर रख कर तुम्हारे
आँखें मूँद कर सो जाती हूँ 


फिर उस सपनों की नगरी में
तुम मुझसे मिलने आते हो
देकर खुशियाँ दिल को मेरे
ना जाने कहाँ खो जाते हो...

हैं ये कितने खूबसूरत से पल
जो हैं तेरे प्यार से रौशन
सपने के जैसे हैं
पर हैं ये मेरे
ये पल
जो हैं तेरे प्यार से रौशन !

झिलमिलाती हुई पलकों से...


झिलमिलाती हुयी पलकों से
ओस जब टपकी
लब थरथराये पर कुछ कह न पाए

खामोश थी जुबां
तूफां था निगाहों में
आँखों ने किये हाले दिल बयां
जिसे तुम सुन न पाए

बोझिल सी निगाहों से
तुमको जो किया रुखसत
टूट गए हम फिर सिमट ना पाए

सुकून-ए-दिल खोया
धड़कनें भी रूठीं
सांसें भी रुकी पर
हम मर न पाए

बेजान से एक बुत को जान तुमने दी थी
जान फिर जब निकली तो बेजान हो ना पाए

Sunday 19 August 2012

जिंदगी...

छूता है हर लफ्ज़ तेरा
कभी फूल बनकर कभी खार
ले आता है होठों पर
कभी मुस्कान तो कभी
भर देता है अश्क आँखों में

खुद से उलझती रही बेवजह
मैं दीवानी सी होकर मगर
आज झांकती हूँ बीते पन्नों में तो
हर हर्फ़ नाराज़ हर पल नाखुश

ये किस वहम में गुज़र रही थी जिन्दगी
आज सोचूं तो बस अँधेरे ही नज़र आते हैं

सांस बोझल सी टूटती रही पर
टूटी नहीं अटकी अटकी सी
फंसती ही रही सदा

और इस वहम में जीते रहे 
कि जिन्दा हैं हम जिन्दगी
तू भी हंसती होगी कहीं ना कहीं
देखकर हालत मेरी

किस तरह जिया है तुझको मैंने
बस हाथों से तू रेत बनकर
फिसलती ही रही !


अपनी तहरीर में...


अपनी तहरीर में उकेरे हैं जज्बात सभी
अपनी खामोशी में संजोये हैं अल्फाज़ सभी

अपनी यादों में कैद कर लिए सारे
गुज़रे हुए लम्हात सभी 

बोलती आँखों का सबब ना समझे कोई
लफ़्ज़ों का करते हैं मोलभाव सभी 


हर शक्स अपने आप में अधूरा है
पूरा होने की करते हैं चाह सभी 


यहाँ किसे मुकम्मल जहाँ मिलता है
अधूरी है कहीं कोई ख्वाहिश
अधूरा है कोई ख्वाब कहीं 


जिसे देखो वो चाँद छूने की कोशिश में है
सितारों का कहाँ करता है ख्याल कोई


लौट आते हैं हर बार उसकी बज़्म में जाकर
नहीं मिलता अब उसका नामो निशाँ कहीं 


मुस्कुराती पलकों का हुनर तो देखो
इनमें हैं जब्ज टूटे हुए ख्वाब सभी !

ऐसा लगता है...

ऐसा लगता है 
मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है
एक धुंधलके से ख्वाब के पार
जहाँ तुम अपनी तन्हाई मिटाने आया करते थे 

कुछ ख्वाबो को अपनी पलकों पे बसा कर
चुपचाप मुस्कुराया करते थे 


इस झील के साये में तुमने
कुछ लफ्ज़ दोहराए थे बार बार
समझ कर उन लफ़्ज़ों के इशारे
कुछ कँवल मेरी ओर खिचे चले आये थे 


उन हसीं कंवलों को जो छूआ मैंने
एक नूर मेरी रूह में दाखिल हुआ
रोआं रोआं मेरा जैसे रोशन हुआ
हाँ शायद ...
यही झील का किनारा था
जहाँ तुम्हें मैंने पहली बार देखा था !

Tuesday 7 August 2012

ख़ामोश दिल की तनहाइयाँ बोलती हैं

खामोश दिल की तन्हाईयाँ  बोलती हैं...

खामोश दिल की तन्हाइयां बोलती हैं
कोई नहीं सुनता जब परछाइयां बोलती हैं,
टूट रहा जो मुझमें ये क्या है
समझ ना पाऊं मैं
गुमसुम हैं निगाहें मेरी
फिर किसकी सदाएं बोलती हैं,
भींग जाती हैं पलकें यादों में तेरी
तकती रहती हैं तेरा रास्ता
उमड़ रहा है तूफां सा दिल में
धड़कनों की झनझनाहट बोलती हैं,
टूट रहा है जो दफ़्न हो जायेगा मुझमें
चुपचाप गुम हो जायेगा मुझमें
ना होती है दस्तक दिल पे कोई
ना जुंबिश होती है कहीं
हर सू हैं छाई खामोशियाँ
बस सन्नाटों की सदाएं बोलती हैं !

Monday 6 August 2012

ऐ चाँद...

ऐ चाँद,
तू भी है तन्हा
मैं भी हूँ तन्हा,
मुझे तो है उसका इंतज़ार
पर तू किस इंतज़ार में गुम है
कितने ही सितारे लिपटे हैं तेरे आस पास
फिर तू तन्हा क्यूँ है,
क्या तू भी है भीड़ में तन्हा मेरे जैसा
तो फिर तू मेरे पहलू में आ
आ हम कुछ बातें बाँट लें
ये काली अँधेरी रात है फैली
मिलकर ये अँधेरी रात काट लें !


Sunday 5 August 2012

ये शम्मअ...

ये शम्मअ अब ना होगी कभी रौशन
गुलशुदा हो चुकी है ये भी मेरी तरह
दूर से तो लगता है
बस अभी जल उठेगी
जगमगाएगी अभी शम्मअ- ए-आरज़ू की लौ
पर मिट चुकी है ये भी मेरी तरह
बस बुत है चन्द उम्मीदों का
ना पिघलती है ना सिसकती है
इक सांस भी बाकी नहीं
बस चुपचाप है खड़ी
तकती हुई निगाहों से
ढूंढ रही है कुछ यहीं
जुस्तजू क्या है इसकी
बयां भी कर सकती नहीं
खामोश हो चुकी है ये भी मेरी तरह
ये शम्मअ अब ना होगी कभी रौशन !

मेरी तन्हा तन्हा सी रातों को...

मेरी तन्हा तन्हा सी रातों को जब
तेरी मखमली सदा का सहारा मिला
लम्हा लम्हा डूबा मेरा ख़्वाबों में 
मुझे जीने का इक बहाना मिला

यूँ तो ये जिन्दगी
तेरे तसव्वुर के बिना भी गुजर सकती थी
यूँ तो ये सियह रातें
इन जगमगाते तारों के साथ भी
कट सकती थीं

पर तुम जो मिले तो लगा
इक ख्वाब बरसों पुराना मिला
मेरी तन्हा तन्हा सी रातों को
मेरा अपना इक सितारा मिला !

आँखों में तैरते हैं जो...

आँखों में तैरते हैं जो 
 पानी के मानिंद 
आंसू  नहीं हैं ये 
ये टूटे हुए ख्वाबो के 
चंद कतरे हैं,

ये आँखों में तैरते हुए ख्वाब 
बह ना जाएँ इस डर से 
पलकों को नहीं झपकाया मैंने,

बुत बनाकर जिस्म को अपने 
भींगी आँखों में फिर 
इक ख्वाब सजाया मैंने,

लेकिन ये गीला गीला सा ख्वाब 
गल ना जाए कहीं 
किसी पुराने कागज़ के मानिंद 

इस डर से...

अपनी गीली आँखों को 
जिन्दगी की झुलसती धूप में 
मैं रात भर सुखाती रही !


Saturday 4 August 2012

सहमा सहमा दिल मेरा



सहमा सहमा  ये दिल मेरा ...

सहमा सहमा ये दिल मेरा  
तन्हाई में यूँ  घबराता है  
टूटे हुए टुकड़ों को बस 
समेटता रह जाता है, 
ता उम्र भटकता रहा 
जाने कैसी थी जुस्तजू  
ठोकर खाए जो लौटा 
हाथ खाली देखता रह जाता है,
नश्तर चुभे हैं जो
गमजदा माझी के तुफ़ैल 
दाग उनके देख
अपने हाल से डर जाता है 
सहमा सहमा ये दिल मेरा 
तन्हाई से अब घबराता है !