Tuesday 21 August 2012

झिलमिलाती हुई पलकों से...


झिलमिलाती हुयी पलकों से
ओस जब टपकी
लब थरथराये पर कुछ कह न पाए

खामोश थी जुबां
तूफां था निगाहों में
आँखों ने किये हाले दिल बयां
जिसे तुम सुन न पाए

बोझिल सी निगाहों से
तुमको जो किया रुखसत
टूट गए हम फिर सिमट ना पाए

सुकून-ए-दिल खोया
धड़कनें भी रूठीं
सांसें भी रुकी पर
हम मर न पाए

बेजान से एक बुत को जान तुमने दी थी
जान फिर जब निकली तो बेजान हो ना पाए

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