ऐसा लगता है
मैंने तुम्हें पहले भी कहीं देखा है
एक धुंधलके से ख्वाब के पार
जहाँ तुम अपनी तन्हाई मिटाने आया करते थे
कुछ ख्वाबो को अपनी पलकों पे बसा कर
चुपचाप मुस्कुराया करते थे
इस झील के साये में तुमने
कुछ लफ्ज़ दोहराए थे बार बार
समझ कर उन लफ़्ज़ों के इशारे
कुछ कँवल मेरी ओर खिचे चले आये थे
उन हसीं कंवलों को जो छूआ मैंने
एक नूर मेरी रूह में दाखिल हुआ
रोआं रोआं मेरा जैसे रोशन हुआ
हाँ शायद ...
यही झील का किनारा था
जहाँ तुम्हें मैंने पहली बार देखा था !
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