ये शम्मअ...
ये शम्मअ अब ना होगी कभी रौशनगुलशुदा हो चुकी है ये भी मेरी तरह
दूर से तो लगता है
बस अभी जल उठेगी
जगमगाएगी अभी शम्मअ- ए-आरज़ू की लौ
पर मिट चुकी है ये भी मेरी तरह
बस बुत है चन्द उम्मीदों का
ना पिघलती है ना सिसकती है
इक सांस भी बाकी नहीं
बस चुपचाप है खड़ी
तकती हुई निगाहों से
ढूंढ रही है कुछ यहीं
जुस्तजू क्या है इसकी
बयां भी कर सकती नहीं
खामोश हो चुकी है ये भी मेरी तरह
ये शम्मअ अब ना होगी कभी रौशन !
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