कोई चुपचाप दबे पाँव आकर
मेरे दिल की तरंगों से
लिपट जाता है
और कभी देता है दस्तक
रूह को
फिर साँसों से उलझ जाता है
दिल की जमीं पर
अपना सर रखकर
कुछ देर वो
आँखें मूँद कर सो जाता है
यादों को झंझोर कर सारी
फिर ख्यालों से होकर
गुज़र जाता है
उसके आने और जाने का सफ़र
चुपचाप मैं महसूस किया करती हूँ
वो फिर आएगा दबे पाँव
इस उम्मीद में
उसकी मुन्तजिर रहा करती हूँ !
मेरे दिल की तरंगों से
लिपट जाता है
और कभी देता है दस्तक
रूह को
फिर साँसों से उलझ जाता है
दिल की जमीं पर
अपना सर रखकर
कुछ देर वो
आँखें मूँद कर सो जाता है
यादों को झंझोर कर सारी
फिर ख्यालों से होकर
गुज़र जाता है
उसके आने और जाने का सफ़र
चुपचाप मैं महसूस किया करती हूँ
वो फिर आएगा दबे पाँव
इस उम्मीद में
उसकी मुन्तजिर रहा करती हूँ !
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