Sunday 19 August 2012

अपनी तहरीर में...


अपनी तहरीर में उकेरे हैं जज्बात सभी
अपनी खामोशी में संजोये हैं अल्फाज़ सभी

अपनी यादों में कैद कर लिए सारे
गुज़रे हुए लम्हात सभी 

बोलती आँखों का सबब ना समझे कोई
लफ़्ज़ों का करते हैं मोलभाव सभी 


हर शक्स अपने आप में अधूरा है
पूरा होने की करते हैं चाह सभी 


यहाँ किसे मुकम्मल जहाँ मिलता है
अधूरी है कहीं कोई ख्वाहिश
अधूरा है कोई ख्वाब कहीं 


जिसे देखो वो चाँद छूने की कोशिश में है
सितारों का कहाँ करता है ख्याल कोई


लौट आते हैं हर बार उसकी बज़्म में जाकर
नहीं मिलता अब उसका नामो निशाँ कहीं 


मुस्कुराती पलकों का हुनर तो देखो
इनमें हैं जब्ज टूटे हुए ख्वाब सभी !

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