Monday 6 August 2012

ऐ चाँद...

ऐ चाँद,
तू भी है तन्हा
मैं भी हूँ तन्हा,
मुझे तो है उसका इंतज़ार
पर तू किस इंतज़ार में गुम है
कितने ही सितारे लिपटे हैं तेरे आस पास
फिर तू तन्हा क्यूँ है,
क्या तू भी है भीड़ में तन्हा मेरे जैसा
तो फिर तू मेरे पहलू में आ
आ हम कुछ बातें बाँट लें
ये काली अँधेरी रात है फैली
मिलकर ये अँधेरी रात काट लें !


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