तेरी आँखें उतर गयीं जो दिल में
संभल ना पायी इक पल मैं
जादू से तेरे…
बेकाबू धड़कनें मेरी
दौड़ रहीं थीं बेइख्तियारी में
ना जाने किस खुमारी में ,
लौट आयी हूँ मगर
तुझको लिए साथ
भर लायी हूँ अपनी आँखों में
सहेज कर लम्हें कुछ ख़ास ,
खुद ही कुरेदती हूँ उनको
खुद ही मुस्कुराती हूँ
लम्हा लम्हा जब तुझको
अपने करीब पाती हूँ ,
तेरी छुअन से फैली हैं
इक बर्क सी बदन में
तेरे हाथों की गर्माहट से
पिघलती रही पल पल मैं ,
समेट रही हूँ कतरा कतरा
बह गया है जो
जर्रा जर्रा मेरे बदन का ,
पर हूँ इस ख्याल में
बह गयी हूँ ये किस बहाव में
मैं हूँ पर...
मुझमें ना रहा सबकुछ मेरा
डूब गया है हर पल मेरा
तेरे तसव्वुर तेरे एहसास में…!
No comments:
Post a Comment