Wednesday 17 September 2014

मेरे इश्क़ का हासिल तुम हो...

मेरे इश्क़ का हासिल तुम हो 
मेरा इश्क़ किसी की जागीर नहीं 
ना है उल्फ़त में बँधा दिल किसी की 
मुझे तो मुझसे भी मुहब्बत नहीं,

पाश-पाश हुआ है शीशा-ए-दिल मेरा 
रंज मुझको मगर फिर भी नहीं 
उठते हैं दिल से शरारे हर सू 
सुलगता मेरा जिस्म फिर भी नहीं,

ये किस तीरगी ने लपेटा है मुझको 
मुद्दतें हुईं आफ़ताब देखे हुए 
जागती रहती हैं मेरे साथ रातें मेरी 
सदियां हैं बीती सुबह का ख़्वाब देखे हुए!

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