Saturday, 14 March 2015

टांग रखे हैं सपने...


टांग रखे हैं खूंटी से सपने दीवारों पर
जब जी चाहे इन्हें देख लिया करती हूँ

कोई आ जाए कहीं इनसे मिलने 
इस ख्याल से...
हर रोज़ इन्हें साफ़ किया करती हूँ।।

Tuesday, 24 February 2015

लगता है तू आने को है...

उम्मीद की लौ जल रही अभी 
दिल भी मुस्कुराने को है 
लगता है तू आने को हैं 

खुशनुमा हैं वादियां ये नज़ारे सभी 
दिल कोई तरन्नुम गुनगुनाने को है 
लगता है तू आने को है 

बेवजह ही सही तुझसे झगड़ना भी है 
हाल-ए-दिल तुझे बयां करना भी है 

आँखों आँखों में दीदार तेरा करना भी है 
आँखें तेरी फिर कोई सितम ढाने को है 
लगता है तू आने को है 

मुदद्तें हुई तेरा दीदार किये हुए 
सदियाँ हैं बीती तेरा इंतज़ार किये हुए 
सब्र मेरा अब रंग लाने को है 
लगता है तू आने को है !

कुछ इशारे बचाये रखना...


आँखों के कुछ इशारे बचाये रखना 
कुछ मोती पलकों में छुपाये रखना 

मोहब्बत है जिंदगी हमने माना मगर 
कुछ लम्हे खुद के लिए सजाये रखना 

टूट कर चाहना किसी को दिल की फितरत ही सही 
पर खुद को संभाले रखो इतनी दूरी बनाये रखना 

ये चाहने वाले बड़े खुदगर्ज़ हैं ज़माने में 
खुद को न भूल जाना इतनी याददाश्त बनाये रखना !

Thursday, 18 September 2014

पिघल ना जाऊं कहीं...

ना दिया करो यूँ सदायें मुझे 
कि पिघल ना जाऊँ कहीं,

वादे किये हैं जो दिल से मैनें 
उनसे मुकर ना जाऊँ कहीं,

ना आओ यूँ करीब 
कि कहीं घुल ना जाओ मेरी साँसों में,

ना देखा करो यूँ आँखों में मेरी 
कि रूह में ना उतर जाओ कहीं !

क्या दूँ तुमको...

आज और क्या दूँ तुमको 
इस यक़ीन के सिवा 
रहूँगी यूँ ही सदा तेरे पास में 
तेरे साये की तरह,

तेरी हँसी से जो आ जाती है 
मेरे होठों पे मुस्कुराहट 
तुझे देख कर जो मिल जाता है 
मेरे दिल को सुक़ून,

तेरी यादों से जो भींग जाती हैं 
जहन की दीवारें मेरी 
तेरी आहट से जो थम जाती हैं 
नज़रें मेरी,

ये सब हैं चश्मदीद उन पलों के 
जो गुज़रते हैं तेरे संग,

यही कुछ लम्हें हैं 
जो चुरा लेती हूँ वक़्त से,

कुछ सहेज़ लिए हैं मैनें 
कुछ तुम भी रख लेना !


Wednesday, 17 September 2014

मेरे जज्बात सभी...

"मेरे ज़ज्बात सभी आँखों में उमड़ आते हैं 
नहीं देख पाती तुमको जी भर के 
कोई पढ़ ना ले कहीं 
तुम्हें मेरी आँखों में 
इस ख्याल से... 
पलकें झुका लीं मैनें "

एक प्यास है मयस्सर...

तुमसे क्या करूँ उम्मीद-ए-वफ़ा मैं 
हवा के झोंके की मानिन्द 
छू कर गुज़र जाओगे तुम,

ये तल्ख़ियाँ तो हैं मेरी जीस्त में शामिल 
मुझे मेरी बेचैनियों में 
और डुबा जाओगे तुम,

इक प्यास है मयस्सर 
जो बुझती नहीं कभी 
इक तलब है 
जो ख़त्म होती नहीं कभी,

ये बेताबियाँ जो उफान लेती रहती हैं दिल में 
इनकी तो आदत है मचल जाने की,

किस उम्मीद में साँसें लेती रहूँ मैं 
ज़िस्म-ओ-जान नाउम्मीद हो चुके हैं 
ना जाने कब से,

इक आग है जो जलाती रहती है रूह को 
इक साँस है जो टूट पाती नहीं,

ना घेरा डालो 
मेरे जहन की दीवारों पर यूँ 
इसकी तो आदत है 
ख़्वाब सजाने की !