Kabhi Yu Hi Beithe Khamosh Pahro Kabhi Nazaron Ne Haal-e-dil Bayan kiya... Kabhi Ki Dil Ki Baatein Dil Hi Mein Kabhi Lafzo Mein Izhaar Kiya...
Saturday, 28 September 2013
सोच क्या है...
सोच क्या है ...
एक कतरा ख्याल भरा
एक पल ख्व़ाब भरा
जीवन को दे दे आस कभी
आँखों में भर दे प्यास कभी,
प्यास क्या है ...
एक बूँद एहसासों की
एक कसक अरमानों की
लबों को दे दे इंतज़ार कभी
दिल में भर दे आस कभी,
आस क्या है ...
एक ज्योति विश्वास भरी
एक साथी निस्वार्थ भरी
जिन्दगी को दे दे सहारा कभी
डूबते को दे दे किनारा कभी !
मेरी दुनिया...
मेरे सपने बसते हैं जहाँ
वो दुनिया जो सिर्फ मेरी है
मेरी सारी हसरतों के निशां
आज भी मुझे अक्सर
वहीं मिल जाया करते हैं,
जब जब गुजरती हूँ
यादों की उन गलियों से
मेरी वफाओ के वो
अनगिनत बुझे हुए दिये
आज भी मुझे अक्सर
वहीं दिख जाया करते हैं,
वक़्त के इन पथरीले रास्तों ने
मेरी दुनिया को भी
पथरीली करना चाहा,
मुझे खुद से जुदा करके
मुझे भी इस पत्थर की दुनिया का
इक हिस्सा करना चाहा,
पर मेरे अस्तित्व के ये चिन्ह
मेरे दिल से जुड़े ये मोम के रिश्ते
आज भी मुझे अक्सर
मेरी दुनिया में ले जाया करते हैं !
टूटे हुए ख्वाब...
आँखों में तैरते हैं जो
पानी के मानिन्द
आँसू नहीं हैं ये
ये टूटे हुए ख्वाबों के
चंद टुकड़े हैं,
ये आँखों में तैरते हुए ख्वाब
बह ना जायें कहीं
इस डर से
पलकों को नहीं झपकाया मैंने,
बुत बनाकर जिस्म को अपने
भीगीं आँखों में फिर
इक ख्वाब सजाया मैंने,
लेकिन ये गीला गीला सा ख्वाब
गल ना जाये कहीं
किसी पुराने कागज़ के मानिन्द,
इस डर से
अपनी गीली आँखों को
जिन्दगी की झुलसती धूप में
मैं रात भर सुखाती रही !
Thursday, 2 May 2013
तुम हाँ तुम...
हाँ तुम ही तो हो
जो मुस्कुराते हो मेरी आँखों में
झिलमिलाते हो मेरी
पलकों में,
तुम
हाँ तुम ही तो हो
जो कह जाते हो अनकही सी
बातें कई
यूँ ही बातों बातों में,
तुम
हाँ तुम ही तो हो
जो छू जाते हो मुझे
सबा की सूरत,
तुम
हाँ तुम ही तो हो
जो मिल जाते हो मुझे
ख़्वाबों ख्यालों की राहों में
कई गुमनाम सवालों में,
तुम
हाँ तुम ही तो हो
जो हो हर घड़ी शामिल
मेरे जहन ओ दिल
की तकरारों में,
तुम
हाँ बस तुम ही हो
मेरी धड़कनों की रफ्तारों में
मेरी रूह की तासीर
मेरे सुकून
मेरे एहसासों में !
मेरे दिल-ए-नादाँ...
मेरे दिले नादां ...
ये तेरी कैसी तमन्ना है
क्यूं तू इस कदर
खुद पर जुल्मों सितम ढाता है,
क्यूं पटकता है सर
क्यूं पटकता है सर
उन दरख्तों पर
जिनकी दीवारें
ना जाने कब से खामोश हो चुकीं हैं,
नहीं है सुनवाई कोई
नहीं है सुनवाई कोई
तेरे इन बेकीमती जज्बातों की,
नहीं है मोल कोई
तेरे इन अश्कों का
जो बी बेसुध बेवजह
ना जाने क्यूं बहते हैं,
तेरी दीवानगी का असर
अब उस पर नहीं
तू भी ये जिद्द छोड़ दे
वक़्त के बहाव का मुख ना मोड़
अब ये दीवानगी छोड़ दे
मेरे दिले नादां ...!
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