Sunday, 21 April 2013

रात के सन्नाटों में...


रात के सन्नाटों में
दब गयीं चीखें सभी

सहमी सहमी सी खामोश
बस चुपचाप सी
एक सिरहन के साथ टूटी
टूट कर बिखरी रही

कौन सुनता आवाज़े सन्नाटों की
कौन था जो महसूस करता
वो खामोश चीखें

जो दिन रात बस 
सुर्ख आँखों के रास्ते
निकलती रहीं

सुलगती रही अंगारों सी
पर सिसकी नहीं कहीं
दफ्न हो भी जाती
फिर भी...

तन्हा तन्हा सी
अपने ही अन्दर
सिसकती रही !


नन्हें नन्हें लफ्ज़...

सोच के दरवाज़े से झांकते हैं
नन्हे नन्हे लफ्ज़
कुछ सकुचाते कुछ इतराते
कुछ जिन्दगी को टटोलते
कुछ मासूम कुछ नटखट लफ्ज़
नन्हे नन्हे हाथों से थामते
उँगलियाँ मेरी
बहलाते कभी मन
कभी रूठ जाते ये लफ्ज़
दे जाते कभी उमंग जिन्दगी को
कभी मायूस कर जाते
ये लफ्ज़
सोच के दरवाज़े से झांकते हैं
 नन्हे नन्हे लफ्ज़ !


Sunday, 14 April 2013

तस्वीर हो गया...

तस्वीर बनाते बनाते खुद तस्वीर हो गया
वो शख्स मुझे कितना अजीज हो गया

आँखों में बंद था मोती बनकर
जाने कैसे मेरे आरिज़ पे ढलक गया

आज क्यूँ ये आँखें खाली खाली हैं
कौन सा मेहमां आज रुखसत हो गया

शरारत भरी बातों से देता था दिल पे दस्तक
मेरे दिल को वो कितना सूना कर गया

जिस्म में कोई हरकत होती नहीं जाने क्यूँ
रूह बनकर रह रहा था कोई
जाने कहाँ खो गया

खुद को देखती हूँ बड़े गौर से
सब कुछ ठीक ही लगता है

फिर ये कौन सा हिस्सा है
जो मुझमें कम हो गया !

Friday, 22 February 2013

बहुत याद आ रहे हो तुम...

कुछ तो ख़ास है इस सुबह में आज
आज बहुत याद आ रहे हो तुम
दिल में उमड़ रहे हैं ख्यालात  कई
बहुत याद आ रहे हो तुम ...

क्या है ख़ास जो दिल ढूँढता है
हर मंजर में तुझे
महसूस करता है इन हवाओं में तुझे
जो छू लेती हैं तो छूता है हर लम्स तेरा

महसूस कर रही हूँ बंद पलकों से तुझे
मुझे छू जा रहे हो तुम
बहुत याद आ रहे हो तुम
बहुत याद आ रहे हो तुम ...

Sunday, 28 October 2012

कैसा है यह मोहपाश...

मेरे अधरों पर उसके अधरों की प्यास
कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश,

ज्वलित ह्रदय अंतस में पीड़ा
भीगीं पलकें अंतर्मन भीगा
द्रवित होता नहीं जाने क्यूँ
निष्ठुर मन उसका नहीं पड़ता ढीला,

फिर भी करता उसको ही स्मरण
सुनता नहीं जो ह्रदय की पुकार
कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश,

जीवन का यह है सरमाया
लम्हा लम्हा संजोया
हर एक पल
हर एक ख्वाब सजाया,

एक एक मोती संजोकर नयनों में
अथाह समंदर उसको बनाया
जान सका न वह इसकी गहराई
जिसे निज जीवन प्राण बनाया,

कैसा है यह मोहपाश
कैसा है यह मोहपाश !


खामोश लम्हों को चीरती हुई...

खामोश लम्हों को चीरती हुई
अभी अभी गुजरी है
एहसास की कटीली लहर

जिन्दगी बदल रही है
मंज़र भी हैरां हैरां से हुए हैं

और ये आँखों के करीब से
गुज़रता हुआ अजनबी सा ख्वाब

यकीं दिलाता रहता है हर पल
नहीं हूँ मैं अजनबी

मगर फिर भी
इन पथराई सी आँखों को
यकीं आता नहीं
दिल मेरा मुस्कुराता नहीं

खामोश है न जाने कब से
जुंबिश भी कोई होती नहीं

है बस इतनी सी खबर
जिन्दगी बदल रही है
मंज़र भी हैरां हैरां से हुए हैं!

Sunday, 14 October 2012

खुला खुला आसमान...

खुला खुला आसमां
खुला खुला हर एहसास
कुदरत के नजारों में पाया
ख़ूबसूरती का हर एक राज़

उगते सूरज की लालिमा
ठंडी ठंडी वादियाँ
सुनहरी लगती हर एक शाम
रेशम में लिपटी हर एक रात

दूर उड़ते अब्र के टुकड़े
बाहों में आने को बेताब
इठलाती सर्द हवा ये बोले
छू सको तो छूलो मुझे एक बार

पल पल रंग बदलता मौसम
खेल रहा आँख मिचौली
रिमझिम रिमझिम बारिश की बूँदें
साथ हमारे वो भी हो लीं

जमीं हो आसमां पर
आसमां हाथों में हमारे
कितने सुन्दर कितने प्यारे
ये सारे जन्नत के नज़ारे !